दूसरी तरफ यह सिद्ध होता है कि बरामदशुदा प्रकाष्ठ प्रत्यर्थी / अभियुक्त को 1996-97 में मंजूरशुदा 72 पेड़ों का प्रकाष्ठ है, जिसकी उसे निकासी प्राप्त नहीं हुई थी, इसलिए दोषमुक्ति का आदेश उचित है।
3.
इस संकल्प के लिए अधिकृति है कि एक दोषमुक्ति का आदेश जो गुणावगुण पर आधारित हो दोषसिद्धि तथा दण्ड को प्रत्येक उद्देश्य के लिए साफ कर देता है और उसी प्रकार प्रभावी जैसे कि वह कभी पारित ही न किया गया हो।
4.
रंजिश जो कि स्वीकृत तथ्य था, को भी नजरअंदाज किया है, जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों द्वारा स्थापित विभिन्न विधि व्यवस्थाओं के आधार पर रंजिश दोधारे हथियार के रूप में प्रयोग किये जाने चाहिए, परन्तु अवर न्यायालय द्वारा केवल बचाव पक्ष के तथ्यों पर विश्वास करते हुए गलत रूप से दोषमुक्ति का आदेश पारित कर दिया है।
5.
अपीलीय न्यायालय के निर्णय से भी ऐसा कोई तथ्य प्रकाश में नहीं आया है जो यह प्रदर्शित करता हो कि वादीगण का प्रतिवादीगण द्वारा मिथ्या अभियोजन किया गया हो बल्कि जो दोषमुक्ति का आदेश अधीनस्थ न्यायालय के आदेश के विरूद्ध अपीलीय न्यायालय द्वारा किया गया वह अवर न्यायालय के निर्णय में पाई गई तकनीकी कमियों के आधार पर है न कि वादीगण का विद्वेषपूर्ण भावना से अभियोजन करने के आधार पर।
6.
इस प्रकार से निम्न न्यायालय की पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से अभियुक्तगण शिवेन्द्रसिंह, मानसिंह, तेगसिंह, महिपालसिंह, अनिलसिंह, हिमतुआ व मोहनसिंह के विरूद्ध धारा धारा 147,332 सपठित धारा 149,353 सपठित धारा 149,504 सपठित धारा 149 व 506 भा0दं0सं0 का अपराध अभियोजन पक्ष सन्देह से परे सिद्ध करने में सफल रहा है परन्तु निम्न न्यायालय द्वारा अभियुक्तगण को अवैधानिक तथा त्रुटिपूर्ण तरीके से दोषमुक्ति का आदेश विधि विरूद्ध तरीके से पारित किया गया है जो कि अपास्त किये जाने योग्य है।